आँचलिक बोलियों/भाषाओं में कुछ शब्द अपने अर्थ से ऐसे गुँथे होते हैं कि अन्य किसी भी अन्यय भाषा में उसका सटीक शब्दार्थ तलाशना मुश्किल होता है.
राजस्थानी (मारवाड़ी) में ऐसा ही एक शब्द है चत्तर, चतर (चतुर).
यह चतर/चतुर हिंदी में जिस अर्थ में (clever) प्रयुक्त होता है, राजस्थानी में कुछ अंतर से प्रयोग होता है. जैसे अपने कार्य में अत्यधिक सतर्कता बरतने वाले अथवा सावधानी पूर्वक अपना कार्य करने वालों के लिए इस शब्द का प्रयोग किया जाता है. इस शब्द को अपने प्रिय (स्त्री या पुरूष दोनों के लिए) को इंगित करने के लिए भी प्रयुक्त होता है.
इस राजस्थानी लोकगीत में चतुर सजनी के लिए चतुराई शब्द का इतना सुंदर संयोजन है कि बस इसके आनंद से रससिक्त हुआ जा सकता है. किस शब्द में इसकी व्याख्या हो , या तो मुझे भाषा का इतना ज्ञान नहीं या मैं समझा नहीं पा रही.
किसी भाषाशास्त्री के लिए संभव हो तो आभारी रहूँगी....
जयपुरिये गयो ए नादान बनी ए
तन पेहरण की चतुराई बन्नी न लहरियो ल्यायो ए
जोधाणे गयो ए नादान बनी ए
तन प्हेरण की चतुराई मोजड़ी ल्यायो ए...
https://m.youtube.com/watch?v=canMjdds26w
इस गीत में नायक अपनी प्रेयसी से कह रहा है कि वह जयपुर गया था, वहाँ से उसके लिए लहरिया लेकर आया है. जोधपुर गया तो मोजड़ी (जूतियाँ) लेकर आया. इस गीत से यदि चतुराई शब्द हटा दें जो कि यहाँ अपने वास्तविक शब्दार्थ में प्रयुक्त नहीं है , तब भी गीत के रस माधुर्य को कमतर कर देता है.
आँचलिक शब्दों का शिल्प और भाषा में उनको उपयुक्त स्थान पर प्रयोग करने पर जो रस माधुर्य उत्पन्न होता है, उसे गूँगे का गुड़ ही जानो....
राजस्थानी (मारवाड़ी) में ऐसा ही एक शब्द है चत्तर, चतर (चतुर).
यह चतर/चतुर हिंदी में जिस अर्थ में (clever) प्रयुक्त होता है, राजस्थानी में कुछ अंतर से प्रयोग होता है. जैसे अपने कार्य में अत्यधिक सतर्कता बरतने वाले अथवा सावधानी पूर्वक अपना कार्य करने वालों के लिए इस शब्द का प्रयोग किया जाता है. इस शब्द को अपने प्रिय (स्त्री या पुरूष दोनों के लिए) को इंगित करने के लिए भी प्रयुक्त होता है.
इस राजस्थानी लोकगीत में चतुर सजनी के लिए चतुराई शब्द का इतना सुंदर संयोजन है कि बस इसके आनंद से रससिक्त हुआ जा सकता है. किस शब्द में इसकी व्याख्या हो , या तो मुझे भाषा का इतना ज्ञान नहीं या मैं समझा नहीं पा रही.
किसी भाषाशास्त्री के लिए संभव हो तो आभारी रहूँगी....
जयपुरिये गयो ए नादान बनी ए
तन पेहरण की चतुराई बन्नी न लहरियो ल्यायो ए
जोधाणे गयो ए नादान बनी ए
तन प्हेरण की चतुराई मोजड़ी ल्यायो ए...
https://m.youtube.com/watch?v=canMjdds26w
इस गीत में नायक अपनी प्रेयसी से कह रहा है कि वह जयपुर गया था, वहाँ से उसके लिए लहरिया लेकर आया है. जोधपुर गया तो मोजड़ी (जूतियाँ) लेकर आया. इस गीत से यदि चतुराई शब्द हटा दें जो कि यहाँ अपने वास्तविक शब्दार्थ में प्रयुक्त नहीं है , तब भी गीत के रस माधुर्य को कमतर कर देता है.
आँचलिक शब्दों का शिल्प और भाषा में उनको उपयुक्त स्थान पर प्रयोग करने पर जो रस माधुर्य उत्पन्न होता है, उसे गूँगे का गुड़ ही जानो....
हमारे इधर चतरी कहते है ऐसी महिला जो सब काम होशियारी और समझदारी से करती है।
जवाब देंहटाएंबधाई ब्लॉगिंग दिवस की
धन्यवाद वाणी जी | कई बार आंचलिक भाषा में जिन अर्थो में शब्दों को कहा जाता है से वहां के स्थानीय ही ज्यादा सही से समझ सकते है | कई बार बहार वाले तो उसके शाब्दिक मतलबों पर ही अटक अर्थ का अनर्थ भी कर देते है |
जवाब देंहटाएंलेकिन गीत में चतुराई शब्द का वास्तव में कोई मतलब नहीं है।राठोडों में चितर शब्द का प्रयोग होता है।
जवाब देंहटाएंरोचक लगा यह
जवाब देंहटाएंवाकई मुझे भी न जाने क्यों चतर शब्द बहुत भाता है “चतर सुजान” सुना है गाने में 👌...
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंमैं स्वयं राजस्थानी हूँ और शायद इसीलिए इस लोकगीत तथा चतुराई शब्द पर चर्चा, दोनों ही का आनंद (तीन साल बाद ही सही) उठा सका। यहाँ चतुराई शब्द का संकेत पहनने के सही और अच्छे ढंग से की ओर है।
जवाब देंहटाएंbadi hi achhi or kamaal ka likha hai thanks
जवाब देंहटाएंZee Talwara
Zee Talwara
Zee Talwara
Zee Talwara
Zee Talwara
Zee Talwara
Zee Talwara
Zee Talwara
Zee Talwara
उत्तम
जवाब देंहटाएंवाह! बहुत सुंदर जानकारी।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर पोस्ट शब्दों का अर्थ अपने अपने प्रदेश में अलग-अलग तरह होता है,आदरणीया शुभकामनांऐ
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